Tuesday, January 22, 2019

आत्म कथा



आत्म कथा

न तो मैं शायर बनना चाहता हूँ |
न ही मैं कवि बनना चाहता हूँ | |
मैं तो बस मेरे दिल के दर्द को,
शब्दों मैं बदलना चाहता हूँ |

दिल से निकलना चाहता हु शूल |
उन्हें बना देना चाहता हूँ फूल | |
पीढ़ाऐ जो भोगी हैं मैंने आज तक,
उन्हें जाना चाहता हूँ भूल |

ये बार बार न आएगी | 
जवानी जो चली जाएगी | |   
सिर्फ बात ही प्यार भरी,
याद करने को रह जाएगी | 


परन्तु लगता है की प्राणियों की आत्मा द्वारा चोला बदलने और योनि बदलने की बात अब पुरानी हो चुकी है | अब तो आदमी के आव - भाव, स्वाभाव और गुण कर्म पशुओं में और पशुओं की खूंखार प्रवर्ति आदमी में प्रवेश होने लगी है |  

Book : संघर्ष की जड़ें (आलेख )
Author : एच ऐन सोलंकी (निर्मोही )
Price: 100 Rs  only 



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