आत्म कथा
न तो मैं शायर बनना चाहता हूँ |
न ही मैं कवि बनना चाहता हूँ | |
मैं तो बस मेरे दिल के दर्द को,
शब्दों मैं बदलना चाहता हूँ |
न ही मैं कवि बनना चाहता हूँ | |
मैं तो बस मेरे दिल के दर्द को,
शब्दों मैं बदलना चाहता हूँ |
दिल से निकलना चाहता हु शूल |
उन्हें बना देना चाहता हूँ फूल | |
पीढ़ाऐ जो भोगी हैं मैंने आज तक,
उन्हें जाना चाहता हूँ भूल |
ये बार बार न आएगी |
जवानी जो चली जाएगी | |
सिर्फ बात ही प्यार भरी,
याद करने को रह जाएगी |
परन्तु
लगता है की प्राणियों की आत्मा द्वारा चोला बदलने और योनि बदलने की बात अब
पुरानी हो चुकी है | अब तो आदमी के आव - भाव, स्वाभाव और गुण कर्म पशुओं
में और पशुओं की खूंखार प्रवर्ति आदमी में प्रवेश होने लगी है |
Book : संघर्ष की जड़ें (आलेख )
Author : एच ऐन सोलंकी (निर्मोही )
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