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Thursday, January 24, 2019

shayari on hospital | अस्पताल पर व्यंग | best new shayari 2019 | jindagi

अस्पताल 

रोज ही मैं अस्पताल में रहता हूँ। 
लाशों का भी हिसाब रखता हूँ।।
कुछ को पहुँचता उनके घर,
कुछ परिक्षण गृह में रखता हूँ। 

टूटी हुई ट्राली जिन्दा लाश।
कोई खींचे हड्डी कोई मांस।।
जिन्दा आते यहाँ कार में,
मुर्दा ढोते फोर्थ क्लास।।

मैं गया प्रसूति गृह,
पत्नी को ले लकर।।
वो लौटी खालि झोली,
मैं लौटा घूंस दे देकर।।



समझ के पैसा हलाल का ढोता हैं। 
वो गधा अस्पताल का होता है।
हाथ न लगाए बीमार बाप से,
वो बेटा भी कमाल का होता है। 

यहाँ कोन किसकी  सुनता है। 
बस अपने ही सपने बुनता।।
जो भी कोई अड़चन पैदा करे,
उसी को पकड़ कर धुनता है।  

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Thursday, October 26, 2017

muktak

मुक्तक

कल बदलेगा, आज बदलेगा | 
राज बदलेगा, काज बदलेगा || 
हमने उठाई  है अब कलम ,
निश्चित ही समाज बदलेगा | 
भूक प्यास की अति नहीं याद | 
ग़रीबी का मालूम नहीं स्वाद || 
वैभव भरी स्वार्थ की स्याही | 
झुग्गियों पे लिख रहीं संवाद || 
शिक्षा , चिकित्सा का हो रहा निजीकरण | 
देशी कम्पनियों का हो रहा विदेशीकरण || 
डर इस बात का सता रहा हे दोस्तों ,
फिरसे ना हो जाये कहीं सत्ता का अपहरण ||
वो मर्द -मर्द नहीं होता | 
जिसे कोई दर्द नहीं होता || 
जिसे पीड़ाएं ना दिखाई दें औरों की,
क्या वो कमज़र्फ नहीं होता || 

 हस्तक्षेप (मुक्तक संग्रह), प्रथम संस्करण २०११ 
एच. एन. सोलंकी( निर्मोही  )  


इसी संकलन के और मुक्तक पढ़ने के लिए लाइक, कमेंट और शेयर ज़रूर करें धन्यवाद ||

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