मदारी
जब से खींची है गरीबी की रेखा।
ऊपर वालों ने भी नीचे ही देखा । ।
और नीचे वालो को और भी नीचे,
गरीबो की गहरी खाईं में फेंका।
ये सदीयों से डमरू बजते हैं।
हर युग में बंदर नचाते हैं।।
बंदर नंगे हो चाहे भूखे सारे,
मदारी अपनी झोली खूब सजाते हैं।
ये आज भी हुड़दंग मचा रहे हैं।
हमें हर खेल में नचा रहे हैं।।
फिर खेल धार्मिक हो या राजनितिक,
ये ही तो सारी कमाई पचा रहे हैं ।
ऊपर वालों ने भी नीचे ही देखा । ।
और नीचे वालो को और भी नीचे,
गरीबो की गहरी खाईं में फेंका।
ये सदीयों से डमरू बजते हैं।
हर युग में बंदर नचाते हैं।।
बंदर नंगे हो चाहे भूखे सारे,
मदारी अपनी झोली खूब सजाते हैं।
ये आज भी हुड़दंग मचा रहे हैं।
हमें हर खेल में नचा रहे हैं।।
फिर खेल धार्मिक हो या राजनितिक,
ये ही तो सारी कमाई पचा रहे हैं ।
अब अस्पतालों में योजना चलाई है ।
एक रोगी कल्याण समिति बनाई है। ।
वहां भी रोगियों का भला हो या न हो,
खुद के लिए अच्छी नीति अपनाई है।
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