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Saturday, January 26, 2019

मदारी (madari) | govt. policies | rajneeti shayari in hindi | shayari on life 2019

 

मदारी

जब से खींची है गरीबी की रेखा।
ऊपर वालों ने भी नीचे ही देखा । ।
और नीचे वालो को और भी नीचे,
गरीबो की गहरी खाईं में फेंका।

ये सदीयों से डमरू बजते हैं।
हर युग में बंदर नचाते हैं।।
बंदर नंगे हो चाहे भूखे सारे,
मदारी अपनी झोली खूब सजाते हैं।

ये आज भी हुड़दंग मचा रहे हैं।
हमें हर खेल में नचा रहे हैं।।
फिर खेल धार्मिक हो या राजनितिक,
ये ही तो सारी कमाई पचा रहे हैं ।

अब अस्पतालों में योजना चलाई है ।
एक रोगी कल्याण समिति बनाई है। ।
वहां भी रोगियों का भला हो या न हो,
खुद के लिए अच्छी नीति अपनाई है।


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Thursday, January 24, 2019

shayari on hospital | अस्पताल पर व्यंग | best new shayari 2019 | jindagi

अस्पताल 

रोज ही मैं अस्पताल में रहता हूँ। 
लाशों का भी हिसाब रखता हूँ।।
कुछ को पहुँचता उनके घर,
कुछ परिक्षण गृह में रखता हूँ। 

टूटी हुई ट्राली जिन्दा लाश।
कोई खींचे हड्डी कोई मांस।।
जिन्दा आते यहाँ कार में,
मुर्दा ढोते फोर्थ क्लास।।

मैं गया प्रसूति गृह,
पत्नी को ले लकर।।
वो लौटी खालि झोली,
मैं लौटा घूंस दे देकर।।



समझ के पैसा हलाल का ढोता हैं। 
वो गधा अस्पताल का होता है।
हाथ न लगाए बीमार बाप से,
वो बेटा भी कमाल का होता है। 

यहाँ कोन किसकी  सुनता है। 
बस अपने ही सपने बुनता।।
जो भी कोई अड़चन पैदा करे,
उसी को पकड़ कर धुनता है।  

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Sunday, January 13, 2019

उम्मीदवार | व्यंग | rajneeti shayari | political shayari 2019

  उम्मीदवार

उम्मीद थी उम्मीदवार अच्छे निकलेंगे,
पता न भी है शेतान के बच्चे निकलेंगे |
जन प्रतिनिधि जानता के नहीं खुद के,
और सरकार के ही वफादार सच्चे निकलेंगे |

देश के कर्णधार भी कमाल करते हैं |
अपनी प्रजा को ही हलाल करते हैं | |
इनके विस्वास की तो बात ही और है,
रक्षा के सौदे भी इनके दलाल करते हैं | |

कभी लूटा इसे घुड़सवारियों ने |
कभी लूटा इसे बनदुकधारियों ने | |
ये देश सदियों से लुट रहा है यारों,
आज हमें लूटा है सत्ताधारियों ने |



हमें लूट कर है सधन वन में घुस गए |
हमें लूट कर ये संसद भवन में घुस गए |
बैठ कर वहां जब करने लगे वो बंटवारा,
मुददा उठा के दो आरक्षण में घुस गए |

काश इनके बदले डाले हाथी पाल लिए होते |
वो डाल पात खाते, पेड़ तो छोड दिए होते | |
इन्होंने तो हाथी को भी शिकस्त है डाली |
अस्तित्व ही मिटा दिया जड़ें भी खोद डाली | |

Wednesday, January 9, 2019

क्या वास्ता | hindi shayari | selfish | best rajneeti shayari

क्या वास्ता

rajneeti shayari


सौदागरों को ईमान से क्या वास्ता | 
इन्हें खली मियां से क्या वास्ता | |

मिल गए वोटों में महल जिन्हें,
उन्हें टूटे माकन से क्या वास्ता |

बन बैठे खुदा मुल्क में जो,
उन्हें अब भगवान से क्या वास्ता | 

वो जी रहे हैं खुश होक बहारों में ,
उन्हें पड़ोस के वीरान से क्या वास्ता |

हम भी  डीजे  टेलीविज़न में,
हमें पडोसी के नुकसान से क्या वास्ता | 
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सत्ता

  ग़ज़ल

सत्ता के पिंजरे में बैठा है सुआ | 
कुतरने की अदा पे ऐंठा है मुआ | | 

कई मर गए यहाँ तड़पके भूक से 
गर्रा के फैंक रहे हैं वो मॉल पुआ |

सत्ता रूपी सुंदरी को पाने के लिए,
ज़िंदगियों से खेल रहे हैं वो जुआ | | 

वो महलों में रहने वाले क्या जानें 
गरीबों के जलते दिलों से उठता नहीं धुंआ | 

 

Wednesday, December 12, 2018

परिचय

परिचय

नाम है मेरा एच एन सिंह 
सरनेम है सोलंकी
कुछ लोग कहते हैं हरीश |
काम करता हूँ स्वास्थ सम्बन्धी ,
इसलिए प्यार करते हैं मुझसे मरीज | |
  •  
सोला + अंकी = सोलंकी, याने
सोलह आने सही बात करने और
सही काम करने वाला सोलंकी |
  •  
तलवार नहीं उठाते सच्चे सोलंकी,
सिर्फ हल और कलम ही चलते हैं |
वे कोई और होंगे जो मानवता को खून से
चिकने पत्थरों को दूध से नहलाते हैं | |
  •  
कल्पनाओं की उड़ान नहीं उड़ता मैं ,
हकीकतों के इतिहास लिखता हूँ |
छुपा राखी हैं असलियतें, उन्हीं के
उजागर दुस्साहस लिखता हूँ |  |
  •  
वक्त मिले कभी देख लेना - सुन लेना
मैं शोले  उगलता हूँ |
मैं क्रोध की आग, लिए फिरता हूँ  |
कठोर वाणीमैं राग,लिए फिरता हूँ | |

कुदरत ने दी है मुझे, कठोर वाणी,
इसलिए व्यंग बाण लिए फिरता हूँ | |
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Wednesday, March 7, 2018

व्यवस्थाऐं

  व्यवस्थाऐं

तरह तरह का भ्रष्टाचार है 
तरह तरह की है भ्रष्टाचारी | 
मिल्क बिस्किट खाते उनके टॉमी 
आत्म हत्या करते भूके कर्मचारी ||  
  •  
तरह तरह का आतंक है 
तरह तरह के हैं आतंकवादी | 
सरहद पे शहीद होती गाँव की खाकी 
दिल्ली का ताज पहनती है खादी  || 

अब तो चरवाहों से हमजोली कर ली | 
भेड़ियों ने भेड़ों की रखवाली कर ली || 
इस नए ज़माने में नए तरीके से 
शिकारियों ने शिकार से आँख मिचोली करली || 

व्यवस्थाएं चिताओं पे पलती रही | 
वे धर्म के नाम पर हमें छलती रही || 
जब संविधान में हक मिला हमें |
तो बहस संशोधन पे चलती रही ||

Thursday, October 26, 2017

muktak

मुक्तक

कल बदलेगा, आज बदलेगा | 
राज बदलेगा, काज बदलेगा || 
हमने उठाई  है अब कलम ,
निश्चित ही समाज बदलेगा | 
भूक प्यास की अति नहीं याद | 
ग़रीबी का मालूम नहीं स्वाद || 
वैभव भरी स्वार्थ की स्याही | 
झुग्गियों पे लिख रहीं संवाद || 
शिक्षा , चिकित्सा का हो रहा निजीकरण | 
देशी कम्पनियों का हो रहा विदेशीकरण || 
डर इस बात का सता रहा हे दोस्तों ,
फिरसे ना हो जाये कहीं सत्ता का अपहरण ||
वो मर्द -मर्द नहीं होता | 
जिसे कोई दर्द नहीं होता || 
जिसे पीड़ाएं ना दिखाई दें औरों की,
क्या वो कमज़र्फ नहीं होता || 

 हस्तक्षेप (मुक्तक संग्रह), प्रथम संस्करण २०११ 
एच. एन. सोलंकी( निर्मोही  )  


इसी संकलन के और मुक्तक पढ़ने के लिए लाइक, कमेंट और शेयर ज़रूर करें धन्यवाद ||

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