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Tuesday, January 29, 2019

बिजली का बिल | shayari on politics | life shayari

बिजली का बिल

गांव के हर खेत में हे कुंआ। 
फसलों ने मगर पानी नहीं छुआ। 

बंद पड़े हैं मोटर पम्प फिर भी 
बिल बिजली का हज़ारों में हुआ। 

बन कर कर्जदार साहूकारों का 
रो रहा बैठ कर खेत में घनसुआ। 

बिजली के रूबरू खड़े हो कर 
लोग मांगते हैं रौशनी की दुआ। 

सर पटक पटक कर किसान 
बिजली के दफ्तर में कुर्बान हुआ।

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Thursday, January 24, 2019

shayari on hospital | अस्पताल पर व्यंग | best new shayari 2019 | jindagi

अस्पताल 

रोज ही मैं अस्पताल में रहता हूँ। 
लाशों का भी हिसाब रखता हूँ।।
कुछ को पहुँचता उनके घर,
कुछ परिक्षण गृह में रखता हूँ। 

टूटी हुई ट्राली जिन्दा लाश।
कोई खींचे हड्डी कोई मांस।।
जिन्दा आते यहाँ कार में,
मुर्दा ढोते फोर्थ क्लास।।

मैं गया प्रसूति गृह,
पत्नी को ले लकर।।
वो लौटी खालि झोली,
मैं लौटा घूंस दे देकर।।



समझ के पैसा हलाल का ढोता हैं। 
वो गधा अस्पताल का होता है।
हाथ न लगाए बीमार बाप से,
वो बेटा भी कमाल का होता है। 

यहाँ कोन किसकी  सुनता है। 
बस अपने ही सपने बुनता।।
जो भी कोई अड़चन पैदा करे,
उसी को पकड़ कर धुनता है।  

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Tuesday, January 22, 2019

आत्म कथा



आत्म कथा

न तो मैं शायर बनना चाहता हूँ |
न ही मैं कवि बनना चाहता हूँ | |
मैं तो बस मेरे दिल के दर्द को,
शब्दों मैं बदलना चाहता हूँ |

दिल से निकलना चाहता हु शूल |
उन्हें बना देना चाहता हूँ फूल | |
पीढ़ाऐ जो भोगी हैं मैंने आज तक,
उन्हें जाना चाहता हूँ भूल |

ये बार बार न आएगी | 
जवानी जो चली जाएगी | |   
सिर्फ बात ही प्यार भरी,
याद करने को रह जाएगी | 


परन्तु लगता है की प्राणियों की आत्मा द्वारा चोला बदलने और योनि बदलने की बात अब पुरानी हो चुकी है | अब तो आदमी के आव - भाव, स्वाभाव और गुण कर्म पशुओं में और पशुओं की खूंखार प्रवर्ति आदमी में प्रवेश होने लगी है |  

Book : संघर्ष की जड़ें (आलेख )
Author : एच ऐन सोलंकी (निर्मोही )
Price: 100 Rs  only 



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Monday, January 21, 2019

Muktak


love Shayari 

मैं तो आसमां हूँ खली खली 
तू हर रंगों से भरी धरती है | 
 यहाँ कुदरत की हर नियामतें ,
तुझे ही झुक कर सलामत करती हैं ||
°
यूँ तो मुझमें तुझमें 
जमी आसमां का फर्क है | 
तेरी बाँहों में मेरी जन्नत,
वर्ना सारा जीवन ही नर्क है ||
°
वक्त गुजार लिया सफर समझकर | 
फिर ठुकरा दिया पत्थर समझकर || 
एक नहर पार कर न सके प्यार की,
गोते खाने लगे समंदर समझकर | 
°
डोलियां भी सजाई जाती हैं | 
खुशियां भी मनाई जाती हैं || 
फिर क्यों  जल्दी ही उनकी,
अर्थियां भी जलाई जाती हैं |
°
हमने कई पैगाम भिजवाए थे | 
लौटकर जवाब नहीं आए थे | | 
मालूम नहीं अभी तक हमें दोस्तों,
वो खफा थे या फिदा भी हो पाए थे | 

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Sunday, January 13, 2019

यार मेरे

 यार मेरे

अभी अभी तो साथ मिला है यार मेरे |
उम्मीदों का एक फूल खिला है यार मेरे | |
देख के दूरी मंजिल की घबराना नहीं
अभी तो शुरू हुआ है सिलसिला यार मेरे |



कहने को बातें बहुत मगर मजबूरी है,
अभी वक्त का मुंह सिला है यार मेरे |
अब तो ऊब ही गए बेरूखी से उनकी ,
हमसे ऐसा क्या गिला है यार मेरे |

ठोकरों की भी हद होती है निर्मोहि,
दर्दों का यहाँ तो किला है यार मेरे |
आज वो भी चल दिए आए थे, जो मेहमान
विदाई में हाथ नहीं दिल हिला है यार मेरे |

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