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Wednesday, January 9, 2019

निर्मोही : मौत | shayari on life | hindi shayari | life shayari 2019

  मौत 

(shayari on life )

पहले बहला फुसला के मिली |
फिर दिल को दहलाके मिली | |
हम तो घबराये हैं उसे देख कर,
वो मुस्कान ओठों पे खिला के मिली |
कल फिर मुलाकात हो गई उससे ,
अटल है वो एहसास दिल के मिली | |
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 Shayari On Life  

(ग़ज़ल - जिंदगी शायरी  )

जमी पे रहके जमीं की बात करें,
जीना मरना यहाँ पे यहीं की बात करें।

मिलता हो ठिकाना सर छुपाने का जहाँ 
वक्त मिले जितना भी वहीँ की बात करें। 

गगन का सूरज तो गर्माता ही रहा है 
हम कुछ नाम किखें  नमीं की बात करें। 

खुशबु सभी गुलाबों में है महकती हुई 
हर फूल में हम यकीं की बात करें।   
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सुलगते स्वर | Attitude shayari | shayari on life 2019

सुलगते स्वर

(Attitude shayari )
 
 आग है अंगार हैं सुलगते स्वर | 
ढाल है तलवार हैं सुलगते स्वर | | 
सुकून भी मिलेगा किसी को चुभन भी,
गुल है खार है सुलगते स्वर | 

विवादों के समंदर में किनारे ढूंढ़ती,
सत्य की पतवार है सुलगते स्वर |
 कविता तो एक बहाना है निर्मोही,
दिल के उदगार हैं सुलगते स्वर |



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Wednesday, December 12, 2018

परिचय

परिचय

नाम है मेरा एच एन सिंह 
सरनेम है सोलंकी
कुछ लोग कहते हैं हरीश |
काम करता हूँ स्वास्थ सम्बन्धी ,
इसलिए प्यार करते हैं मुझसे मरीज | |
  •  
सोला + अंकी = सोलंकी, याने
सोलह आने सही बात करने और
सही काम करने वाला सोलंकी |
  •  
तलवार नहीं उठाते सच्चे सोलंकी,
सिर्फ हल और कलम ही चलते हैं |
वे कोई और होंगे जो मानवता को खून से
चिकने पत्थरों को दूध से नहलाते हैं | |
  •  
कल्पनाओं की उड़ान नहीं उड़ता मैं ,
हकीकतों के इतिहास लिखता हूँ |
छुपा राखी हैं असलियतें, उन्हीं के
उजागर दुस्साहस लिखता हूँ |  |
  •  
वक्त मिले कभी देख लेना - सुन लेना
मैं शोले  उगलता हूँ |
मैं क्रोध की आग, लिए फिरता हूँ  |
कठोर वाणीमैं राग,लिए फिरता हूँ | |

कुदरत ने दी है मुझे, कठोर वाणी,
इसलिए व्यंग बाण लिए फिरता हूँ | |

Thursday, October 26, 2017

muktak

मुक्तक

कल बदलेगा, आज बदलेगा | 
राज बदलेगा, काज बदलेगा || 
हमने उठाई  है अब कलम ,
निश्चित ही समाज बदलेगा | 
भूक प्यास की अति नहीं याद | 
ग़रीबी का मालूम नहीं स्वाद || 
वैभव भरी स्वार्थ की स्याही | 
झुग्गियों पे लिख रहीं संवाद || 
शिक्षा , चिकित्सा का हो रहा निजीकरण | 
देशी कम्पनियों का हो रहा विदेशीकरण || 
डर इस बात का सता रहा हे दोस्तों ,
फिरसे ना हो जाये कहीं सत्ता का अपहरण ||
वो मर्द -मर्द नहीं होता | 
जिसे कोई दर्द नहीं होता || 
जिसे पीड़ाएं ना दिखाई दें औरों की,
क्या वो कमज़र्फ नहीं होता || 

 हस्तक्षेप (मुक्तक संग्रह), प्रथम संस्करण २०११ 
एच. एन. सोलंकी( निर्मोही  )  


इसी संकलन के और मुक्तक पढ़ने के लिए लाइक, कमेंट और शेयर ज़रूर करें धन्यवाद ||

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