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Thursday, January 24, 2019

shayari on hospital | अस्पताल पर व्यंग | best new shayari 2019 | jindagi

अस्पताल 

रोज ही मैं अस्पताल में रहता हूँ। 
लाशों का भी हिसाब रखता हूँ।।
कुछ को पहुँचता उनके घर,
कुछ परिक्षण गृह में रखता हूँ। 

टूटी हुई ट्राली जिन्दा लाश।
कोई खींचे हड्डी कोई मांस।।
जिन्दा आते यहाँ कार में,
मुर्दा ढोते फोर्थ क्लास।।

मैं गया प्रसूति गृह,
पत्नी को ले लकर।।
वो लौटी खालि झोली,
मैं लौटा घूंस दे देकर।।



समझ के पैसा हलाल का ढोता हैं। 
वो गधा अस्पताल का होता है।
हाथ न लगाए बीमार बाप से,
वो बेटा भी कमाल का होता है। 

यहाँ कोन किसकी  सुनता है। 
बस अपने ही सपने बुनता।।
जो भी कोई अड़चन पैदा करे,
उसी को पकड़ कर धुनता है।  

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Tuesday, January 22, 2019

आत्म कथा



आत्म कथा

न तो मैं शायर बनना चाहता हूँ |
न ही मैं कवि बनना चाहता हूँ | |
मैं तो बस मेरे दिल के दर्द को,
शब्दों मैं बदलना चाहता हूँ |

दिल से निकलना चाहता हु शूल |
उन्हें बना देना चाहता हूँ फूल | |
पीढ़ाऐ जो भोगी हैं मैंने आज तक,
उन्हें जाना चाहता हूँ भूल |

ये बार बार न आएगी | 
जवानी जो चली जाएगी | |   
सिर्फ बात ही प्यार भरी,
याद करने को रह जाएगी | 


परन्तु लगता है की प्राणियों की आत्मा द्वारा चोला बदलने और योनि बदलने की बात अब पुरानी हो चुकी है | अब तो आदमी के आव - भाव, स्वाभाव और गुण कर्म पशुओं में और पशुओं की खूंखार प्रवर्ति आदमी में प्रवेश होने लगी है |  

Book : संघर्ष की जड़ें (आलेख )
Author : एच ऐन सोलंकी (निर्मोही )
Price: 100 Rs  only 



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Sunday, January 13, 2019

यार मेरे

 यार मेरे

अभी अभी तो साथ मिला है यार मेरे |
उम्मीदों का एक फूल खिला है यार मेरे | |
देख के दूरी मंजिल की घबराना नहीं
अभी तो शुरू हुआ है सिलसिला यार मेरे |



कहने को बातें बहुत मगर मजबूरी है,
अभी वक्त का मुंह सिला है यार मेरे |
अब तो ऊब ही गए बेरूखी से उनकी ,
हमसे ऐसा क्या गिला है यार मेरे |

ठोकरों की भी हद होती है निर्मोहि,
दर्दों का यहाँ तो किला है यार मेरे |
आज वो भी चल दिए आए थे, जो मेहमान
विदाई में हाथ नहीं दिल हिला है यार मेरे |

Wednesday, January 9, 2019

निर्मोही : मौत | shayari on life | hindi shayari | life shayari 2019

  मौत 

(shayari on life )

पहले बहला फुसला के मिली |
फिर दिल को दहलाके मिली | |
हम तो घबराये हैं उसे देख कर,
वो मुस्कान ओठों पे खिला के मिली |
कल फिर मुलाकात हो गई उससे ,
अटल है वो एहसास दिल के मिली | |
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 Shayari On Life  

(ग़ज़ल - जिंदगी शायरी  )

जमी पे रहके जमीं की बात करें,
जीना मरना यहाँ पे यहीं की बात करें।

मिलता हो ठिकाना सर छुपाने का जहाँ 
वक्त मिले जितना भी वहीँ की बात करें। 

गगन का सूरज तो गर्माता ही रहा है 
हम कुछ नाम किखें  नमीं की बात करें। 

खुशबु सभी गुलाबों में है महकती हुई 
हर फूल में हम यकीं की बात करें।   
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धूप दोपहरी की

  ग़ज़ल

माव फागुन में नारमती धूप दोपहरी की | 
चेत बैसाख में गरमात, धूप दोपहरी की |

जेठ आषाढ़ में ओढ़ चुनरिया बदल की,
सावन भादो में तरसती, धूप दोपहरी की |

देह की नदी में आ जाती  बारिश बाढ़,
मेहनतकशों से घबराती, धूप दोपहरी की |

किस किस और तलाशे धनपति बेचारे,
शीतलता को आँख दिखाती, धूप दोपहरी की |

थलचर नभचर और अब  जाते बेहाल,
हरियाली जब चार जाती, धूप दोपहरी की |

सौगात में मिली हमें सर्दी गर्मी बरसात,
 ऋतु में इठलाती,  धूप दोपहरी की | 

सुलगते स्वर | Attitude shayari | shayari on life 2019

सुलगते स्वर

(Attitude shayari )
 
 आग है अंगार हैं सुलगते स्वर | 
ढाल है तलवार हैं सुलगते स्वर | | 
सुकून भी मिलेगा किसी को चुभन भी,
गुल है खार है सुलगते स्वर | 

विवादों के समंदर में किनारे ढूंढ़ती,
सत्य की पतवार है सुलगते स्वर |
 कविता तो एक बहाना है निर्मोही,
दिल के उदगार हैं सुलगते स्वर |



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Wednesday, December 12, 2018

परिचय

परिचय

नाम है मेरा एच एन सिंह 
सरनेम है सोलंकी
कुछ लोग कहते हैं हरीश |
काम करता हूँ स्वास्थ सम्बन्धी ,
इसलिए प्यार करते हैं मुझसे मरीज | |
  •  
सोला + अंकी = सोलंकी, याने
सोलह आने सही बात करने और
सही काम करने वाला सोलंकी |
  •  
तलवार नहीं उठाते सच्चे सोलंकी,
सिर्फ हल और कलम ही चलते हैं |
वे कोई और होंगे जो मानवता को खून से
चिकने पत्थरों को दूध से नहलाते हैं | |
  •  
कल्पनाओं की उड़ान नहीं उड़ता मैं ,
हकीकतों के इतिहास लिखता हूँ |
छुपा राखी हैं असलियतें, उन्हीं के
उजागर दुस्साहस लिखता हूँ |  |
  •  
वक्त मिले कभी देख लेना - सुन लेना
मैं शोले  उगलता हूँ |
मैं क्रोध की आग, लिए फिरता हूँ  |
कठोर वाणीमैं राग,लिए फिरता हूँ | |

कुदरत ने दी है मुझे, कठोर वाणी,
इसलिए व्यंग बाण लिए फिरता हूँ | |

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