मुक्तक
कल बदलेगा, आज बदलेगा |
राज बदलेगा, काज बदलेगा ||
हमने उठाई है अब कलम ,
निश्चित ही समाज बदलेगा |
भूक प्यास की अति नहीं याद |
ग़रीबी का मालूम नहीं स्वाद ||
वैभव भरी स्वार्थ की स्याही |
झुग्गियों पे लिख रहीं संवाद ||
शिक्षा , चिकित्सा का हो रहा निजीकरण |
देशी कम्पनियों का हो रहा विदेशीकरण ||
डर इस बात का सता रहा हे दोस्तों ,
फिरसे ना हो जाये कहीं सत्ता का अपहरण ||
वो मर्द -मर्द नहीं होता |
जिसे कोई दर्द नहीं होता ||
जिसे पीड़ाएं ना दिखाई दें औरों की,
क्या वो कमज़र्फ नहीं होता ||
हस्तक्षेप (मुक्तक संग्रह), प्रथम संस्करण २०११
एच. एन. सोलंकी( निर्मोही )
इसी संकलन के और मुक्तक पढ़ने के लिए लाइक, कमेंट और शेयर ज़रूर करें धन्यवाद ||
shandar..
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