Thursday, October 26, 2017

muktak

मुक्तक

कल बदलेगा, आज बदलेगा | 
राज बदलेगा, काज बदलेगा || 
हमने उठाई  है अब कलम ,
निश्चित ही समाज बदलेगा | 
भूक प्यास की अति नहीं याद | 
ग़रीबी का मालूम नहीं स्वाद || 
वैभव भरी स्वार्थ की स्याही | 
झुग्गियों पे लिख रहीं संवाद || 
शिक्षा , चिकित्सा का हो रहा निजीकरण | 
देशी कम्पनियों का हो रहा विदेशीकरण || 
डर इस बात का सता रहा हे दोस्तों ,
फिरसे ना हो जाये कहीं सत्ता का अपहरण ||
वो मर्द -मर्द नहीं होता | 
जिसे कोई दर्द नहीं होता || 
जिसे पीड़ाएं ना दिखाई दें औरों की,
क्या वो कमज़र्फ नहीं होता || 

 हस्तक्षेप (मुक्तक संग्रह), प्रथम संस्करण २०११ 
एच. एन. सोलंकी( निर्मोही  )  


इसी संकलन के और मुक्तक पढ़ने के लिए लाइक, कमेंट और शेयर ज़रूर करें धन्यवाद ||

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