ग़ज़ल
सत्ता के पिंजरे में बैठा है सुआ |
कुतरने की अदा पे ऐंठा है मुआ | |
कई मर गए यहाँ तड़पके भूक से
गर्रा के फैंक रहे हैं वो मॉल पुआ |
सत्ता रूपी सुंदरी को पाने के लिए,
ज़िंदगियों से खेल रहे हैं वो जुआ | |
वो महलों में रहने वाले क्या जानें
गरीबों के जलते दिलों से उठता नहीं धुंआ |
ज़बरदस्त,
ReplyDeleteअब तो निकलना चाहिए
नेत्ताओं के पिछवाड़े से धुआँ