Wednesday, January 9, 2019

धूप दोपहरी की

  ग़ज़ल

माव फागुन में नारमती धूप दोपहरी की | 
चेत बैसाख में गरमात, धूप दोपहरी की |

जेठ आषाढ़ में ओढ़ चुनरिया बदल की,
सावन भादो में तरसती, धूप दोपहरी की |

देह की नदी में आ जाती  बारिश बाढ़,
मेहनतकशों से घबराती, धूप दोपहरी की |

किस किस और तलाशे धनपति बेचारे,
शीतलता को आँख दिखाती, धूप दोपहरी की |

थलचर नभचर और अब  जाते बेहाल,
हरियाली जब चार जाती, धूप दोपहरी की |

सौगात में मिली हमें सर्दी गर्मी बरसात,
 ऋतु में इठलाती,  धूप दोपहरी की | 

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