ग़ज़ल
माव फागुन में नारमती धूप दोपहरी की |
चेत बैसाख में गरमात, धूप दोपहरी की |
जेठ आषाढ़ में ओढ़ चुनरिया बदल की,
सावन भादो में तरसती, धूप दोपहरी की |
देह की नदी में आ जाती बारिश बाढ़,
मेहनतकशों से घबराती, धूप दोपहरी की |
किस किस और तलाशे धनपति बेचारे,
शीतलता को आँख दिखाती, धूप दोपहरी की |
थलचर नभचर और अब जाते बेहाल,
हरियाली जब चार जाती, धूप दोपहरी की |
सौगात में मिली हमें सर्दी गर्मी बरसात,
ऋतु में इठलाती, धूप दोपहरी की |
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