अस्पताल
रोज ही मैं अस्पताल में रहता हूँ।
लाशों का भी हिसाब रखता हूँ।।
कुछ को पहुँचता उनके घर,
कुछ परिक्षण गृह में रखता हूँ।
टूटी हुई ट्राली जिन्दा लाश।
कोई खींचे हड्डी कोई मांस।।
जिन्दा आते यहाँ कार में,
मुर्दा ढोते फोर्थ क्लास।।
मैं गया प्रसूति गृह,
पत्नी को ले लकर।।
वो लौटी खालि झोली,
मैं लौटा घूंस दे देकर।।
समझ के पैसा हलाल का ढोता हैं।
वो गधा अस्पताल का होता है।।
हाथ न लगाए बीमार बाप से,
वो बेटा भी कमाल का होता है।
यहाँ कोन किसकी सुनता है।
बस अपने ही सपने बुनता।।
जो भी कोई अड़चन पैदा करे,
उसी को पकड़ कर धुनता है।
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